Monday, 8 October 2012

एक किराने वाले की कहानी

ध्यान से पढ़ें। किराना दुकानदार से मिलकर आ रहा हूं।उनकी जानकारी पर हैरान हूं। जो कहा वो लिख रहा हूं। उसने एक मिसाल दी। तीन चार साल पहले जब आशीर्वाद आटा आया तो थोक में गेहूं 11.50 रुपये प्रति किलो गेहूं मिल रहा था। उसी दाम पर हम आटा चक्की वाले आपको 130 रुपये प्रति दस किलो बेच रहे थे। तब हमारा 140 रुपये प्रति दस किलो था। चूंकी आशीर्वाद के पास पूंजी थी तो कम में बेचा और बाज़ार पर छा गया। लेकिन आज आशीर्वाद दस किलो आटा 240 रुपये का बेचता है और हम 180 रुपये का। थोक में गेहूं 15.50 रुपये प्रति किलो है। तो किसान को कहां ज़्यादा मिला। उपभोक्ता तो ज़्यादा दाम पर ही ख़रीद रहा है। इसलिए किसान के भले की बात पल्ले नहीं पड़ रही है। इतने सालों में दस किलो ग्राम आटे का दाम हमारी चक्की पर 40 रुपये बढ़ा और आशीर्वाद ने 110 रुपये बढ़ाये। इसने जमे जमाए शक्तिभोग की कमर भी तोड़ दी। उसी तरह से टाटा ने मूंग दाल लांच किया है। हाई क्वालिटी की है जो बाज़ार में 80 रुपये प्रति किलो में मिल रही थी । इससे खुदरा मूंग दाल वाले ग़ायब हो गए और अब टाटा की नई पैकेट 100 रुपये प्रति किलो की आ रही है। उसने कहा कि बड़ी कंपनियों के पास घाटा सहने की शक्ति है। जब पड़ोस में मोर का सुपर स्टोर खुला तो हम बर्बाद हो रहे थे लेकिन मंदी आ गई तो लोग दाम का हिसाब लगाने लगे। तब हमारा बिजनेस पिक अप करने लगा लेकिन तभी एक दूसरा मल्टी स्टोर ईजी डे में आ गया। हम पर फिर दबाव बढ़ गया। हम खत्म नहीं हो जायेंगे मगर ज़रूरत क्या है। यह क्यों कहा जा रहा है कि उपभोक्ता और किसान को फायदा होगा। जहां ज़रूरत है वहां निवेश करो। मेट्रो में निवेश का किसी ने विरोध किया। यह भी सही है कि मेट्रो के आने से कारों की बिक्री कम नहीं हुई लेकिन किसी की पूंजी की ताकत से हम कब तक लड़ेंगे। वालमार्ट जहां पर ताकत से खुलेगा वहां हम बर्बाद हो जायेंगे। अभी जो स्टोर खुलते हैं वो ज्यादा दिन नहीं टिक पा रहे हैं। इसलिए हम डूबते उतराते रहते हैं।

एक दुकानदार अपनी समझ से बोले जा रहा था। पूछा कि आपको जानकारी कैसे मिलती है। कहा कि टीवी पर बकवास चलता है हम पेपर ध्यान से पढ़ते हैं


ye bahumulya nazariya NDTV k ek mahan ancor RAVISH JI KA LIKHA HUA HAI

english raj

खोड़ा से मीनू रोज़ बिना नागा काम करने आती हैं। गंगा की समय प्रतिबद्धता लाजवाब है। मैं सत्याग्रह और अहिंसा पर स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त था। अचानक मीनू अंदर आई और खुशी से लबालब नयना से बोलने लगीं। अरे भाभी मेरी बेटी को बेटा हो गया है। पता है सास ने एक हज़ार एक रुपये नर्स को दे दिये। उसकी सास बहुत ख़ुश है। तो अब सब ठीक हो गया मीनू घर में, हां भाभी, पोता होते ही बेटी से सबका व्यवहार बदल गया है। तभी तो हज़ार रुपये दिये नर्स को। क्या बताऊं, एक दम अंग्रेज़ जैसा है। उनकी फैमिली में तो सब कट हैं। ये एकदम कट नहीं है। तब मुझे मुड़ना पड़ा और पूछना पड़ा कि कट क्या होता है। कट मतलब किसी की शक्ल अच्छी नहीं है। सब के सब सांवले भी हैं। लेकिन मेरे नाती की शक्ल भैया बहुत अच्छी है। सही कह रही हूं लगता है अंग्रेज़ ही आ गया है। तो अब ठीक है न। सास तंग तो नहीं करेगी बेटी को। नहीं अब नहीं करेगी।

यही मीनू दो महीने पहले भी आई थी। दहाड़ मार कर रोने लगी कि भैया कुछ करो। मेरी बेटी को पति और ससुराल वाले बहुत मारते हैं। दहेज़ में तीन लाख रुपये दे चुकी हूं। घर घर जाकर काम कर अपनी आजीविका चलाने वाली मीनू ने तीन लाख रुपये दहेज़ के कहां से लाए। जितना कमाती हूं सब ससुराल वालों को दे आती हूं। वे लोग और मांग रहे हैं। आप पुलिस वाले से बोल कर कुछ करा दो। बहुत तक़लीफ़ होती है जब बेटी को मारते हैं तो। देखा नहीं जाता है भैया। कभी यह काम किया तो नहीं है लेकिन उस दिन बोल ही दिया मीनू तुम दोनों को घर ले आना। पहले बात करूंगा और तुमको लगता है कि पुलिस से बात करने से कुछ हो सकता है तो चलूंगा। करोलबाग के एस एच ओ से मिलकर बात करते हैं। मीनू रोज़ आती रही मगर फिर कभी इस बात को नहीं छेड़ा।
मीनू आज भी खुश ही थी तो फिर मैंने पूछ लिया कि अब बेटी के साथ सब ठीक है। नहीं भइया। फिर से वही हो गया। पोता मिल गया न तो सास को लगता है कि मेरी बेटी चली भी जाए तो क्या फर्क पड़ता है। उसको आपरेशन हुआ है और ज़ोर कर रही है कि नहा ले। सोच रहा हूं कि समाज में व्याप्त हिंसा कैसे जाएगी। कब जाएगी। आम ज़िंदगी में कितनी तक़लीफ़ है। इन मर्दों का कुछ करो भाई।