ध्यान से पढ़ें। किराना दुकानदार से मिलकर आ रहा हूं।उनकी जानकारी पर हैरान हूं। जो कहा वो लिख रहा हूं। उसने एक मिसाल दी। तीन चार साल पहले जब आशीर्वाद आटा आया तो थोक में गेहूं 11.50 रुपये प्रति किलो गेहूं मिल रहा था। उसी दाम पर हम आटा चक्की वाले आपको 130 रुपये प्रति दस किलो बेच रहे थे। तब हमारा 140 रुपये प्रति दस किलो था। चूंकी आशीर्वाद के पास पूंजी थी तो कम में बेचा और बाज़ार पर छा गया। लेकिन आज आशीर्वाद दस किलो आटा 240 रुपये का बेचता है और हम 180 रुपये का। थोक में गेहूं 15.50 रुपये प्रति किलो है। तो किसान को कहां ज़्यादा मिला। उपभोक्ता तो ज़्यादा दाम पर ही ख़रीद रहा है। इसलिए किसान के भले की बात पल्ले नहीं पड़ रही है। इतने सालों में दस किलो ग्राम आटे का दाम हमारी चक्की पर 40 रुपये बढ़ा और आशीर्वाद ने 110 रुपये बढ़ाये। इसने जमे जमाए शक्तिभोग की कमर भी तोड़ दी। उसी तरह से टाटा ने मूंग दाल लांच किया है। हाई क्वालिटी की है जो बाज़ार में 80 रुपये प्रति किलो में मिल रही थी । इससे खुदरा मूंग दाल वाले ग़ायब हो गए और अब टाटा की नई पैकेट 100 रुपये प्रति किलो की आ रही है। उसने कहा कि बड़ी कंपनियों के पास घाटा सहने की शक्ति है। जब पड़ोस में मोर का सुपर स्टोर खुला तो हम बर्बाद हो रहे थे लेकिन मंदी आ गई तो लोग दाम का हिसाब लगाने लगे। तब हमारा बिजनेस पिक अप करने लगा लेकिन तभी एक दूसरा मल्टी स्टोर ईजी डे में आ गया। हम पर फिर दबाव बढ़ गया। हम खत्म नहीं हो जायेंगे मगर ज़रूरत क्या है। यह क्यों कहा जा रहा है कि उपभोक्ता और किसान को फायदा होगा। जहां ज़रूरत है वहां निवेश करो। मेट्रो में निवेश का किसी ने विरोध किया। यह भी सही है कि मेट्रो के आने से कारों की बिक्री कम नहीं हुई लेकिन किसी की पूंजी की ताकत से हम कब तक लड़ेंगे। वालमार्ट जहां पर ताकत से खुलेगा वहां हम बर्बाद हो जायेंगे। अभी जो स्टोर खुलते हैं वो ज्यादा दिन नहीं टिक पा रहे हैं। इसलिए हम डूबते उतराते रहते हैं।
एक दुकानदार अपनी समझ से बोले जा रहा था। पूछा कि आपको जानकारी कैसे मिलती है। कहा कि टीवी पर बकवास चलता है हम पेपर ध्यान से पढ़ते हैं
ye bahumulya nazariya NDTV k ek mahan ancor RAVISH JI KA LIKHA HUA HAI
एक दुकानदार अपनी समझ से बोले जा रहा था। पूछा कि आपको जानकारी कैसे मिलती है। कहा कि टीवी पर बकवास चलता है हम पेपर ध्यान से पढ़ते हैं
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